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नज़्म
ये कार-ज़ार-ए-हस्ती है रंज-ओ-ग़म की बस्ती
फिर याद-ए-बज़्म-ए-जम में इक जाम-ए-जम पिला दे
ख़ुशी मोहम्मद नाज़िर
नज़्म
बाग़-ए-वतन में यासमीं है एक यासमन
दोनों के बू से मिटते हैं रंज-ओ-ग़म-ओ-मेहन
रंगेशवर दयाल सक्सेना सूफ़ी
नज़्म
सोचता हूँ कि तिरे प्यार के बदले मुझ को
क्या मिला दर्द-ओ-ग़म-ओ-रंज-ओ-मुसीबत के सिवा