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नज़्म
तेरे सीने में हैं पिन्हाँ राज़-हा-ए-रंज-ओ-ग़म
तू है पिछली कैफ़-परवर सोहबतों का यादगार
साक़िब कानपुरी
नज़्म
बाग़-ए-वतन में यासमीं है एक यासमन
दोनों के बू से मिटते हैं रंज-ओ-ग़म-ओ-मेहन
रंगेशवर दयाल सक्सेना सूफ़ी
नज़्म
मुफ़्लिसी में है जो फ़िक्र-ओ-रंज-ओ-ग़म का इक मक़ाम
है तमद्दुन में वही अहल-ए-क़लम का इक मक़ाम