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नज़्म
जो तारिक़ रोड से हम ने ख़रीदी थी
तुम्हारे बा'द कैफ़िय्यत बदलती जा रही है रख-रखाव की
तौक़ीर चुग़ताई
नज़्म
द्वारका-धीश कहीं बन के मुकुट सर पे रखा
काली कमली रही जंगल में सर-ए-दोश कहीं
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
नज़्म
उस की सरहद में ग़ुलामों ने जो है रखा क़दम
और कंकर पाँव से एक इक के बेड़ी गिर पड़ी