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नज़्म
जो कुछ रह-ए-उल्फ़त में 'तकमील' पे गुज़री है
अफ़्साना-दर-अफ़्साना तहरीर करो यारो
तकमील रिज़वी लखनवी
नज़्म
हम पे मुश्तरका हैं एहसान ग़म-ए-उल्फ़त के
इतने एहसान कि गिनवाऊँ तो गिनवा न सकूँ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
जाम पुर-शोर से गिर जाने दो नाकाम तमन्नाओं की मय
फ़र्श-ए-मय-ख़ाना-ए-उल्फ़त पे उलट दो साग़र
ज़ाहिदा ज़ैदी
नज़्म
ऐ जवाँ-साल-ए-जहाँ जान-ए-जहान-ए-ज़िंदगी
सारबान-ए-ज़िंदगी रूह-ए-रवान-ए-ज़िंदगी!