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नज़्म
यूँ कहने को राहें मुल्क-ए-वफ़ा की उजाल गया
इक धुँद मिली जिस राह में पैक-ए-ख़याल गया
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
जीत का पड़ता है जिस का दानों वो कहता है यूँ
सू-ए-दस्त-ए-रास्त है मेरे कोई फ़र्ख़न्दा-पय
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
राह-ए-बद-ओ-राह-ए-नजात हैं मेरे इख़्तियार में
ग़म हैं मगर ये रास्ते रंग-ब-रंग ग़ुबार में