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नज़्म
फ़िक्र ओ ख़िरद की बहर ओ तलातुम में कश्तियाँ
उभरीं कहीं तो रिज़्क़-ए-समुंदर कहीं हुईं
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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फ़िक्र ओ ख़िरद की बहर ओ तलातुम में कश्तियाँ
उभरीं कहीं तो रिज़्क़-ए-समुंदर कहीं हुईं