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नज़्म
ख़ाक-ए-मरक़द पर तिरी ले कर ये फ़रियाद आऊँगा
अब दुआ-ए-नीम-शब में किस को मैं याद आऊँगा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
वो हँसती है और गिर्या-ए-नीम-शब के समुंदर पे अपना अलम खोलती है
हाथ जल मकड़ियों से कुरेदे हुए
मोहम्मद अनवर ख़ालिद
नज़्म
शिकस्ता झोंपड़े में बाँसुरी-ए-दहक़ाँ की सुर बन कर
सुकूत-ए-नीम-शब में राज़-ए-हस्ती कह रहा होता