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नज़्म
बादा-ए-हुब्ब-ए-वतन के जाम भर भर कर पिला
तिश्नगी प्यासों की यूँ साक़ी बुझानी चाहिए
बाबू मुर्ली धर
नज़्म
हो दर्द-ए-दिल में जज़्बा-ए-हुब्ब-ए-वतन फ़ुज़ूँ
'मफ़्तूँ' क़लम उठाओ कि पंद्रह अगस्त है
मफ़तूं कोटवी
नज़्म
क्या ख़ुदा का ख़ौफ़ कैसा जज़्बा-ए-हुब्ब-ए-वतन
बरसर-ए-पैकार थे आपस में शैख़-ओ-बरहमन
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
नज़्म
कोह वही दमन वही दश्त वही चमन वही
फिर ये 'मजाज़' जज़्बा-ए-हुब्ब-ए-वतन को क्या हुआ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
जज़्बा-ए-हुब्ब-ए-वतन हो न अगर दिल में निहाँ
ऐसे जीने से तो मरने का ख़याल अच्छा है
आफ़ताब रईस पानीपती
नज़्म
वो तही-दस्त हैं जो ज़ोर न ज़र रखते हैं
जज़्बा-ए-हुब्ब-ए-वतन दिल में मगर रखते हैं