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नज़्म
या छोड़ें या तकमील करें ये इश्क़ है या अफ़साना है
ये कैसा गोरख-धंदा है ये कैसा ताना-बाना है
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
गुल से अपनी निस्बत-ए-देरीना की खा कर क़सम
अहल-ए-दिल को इश्क़ के अंदाज़ समझाने लगीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
रूदाद-ए-मोहब्बत फिर कहना अब मान भी जाओ रहने दो
जादू न जगाओ रहने दो फ़ित्ने न उठाओ रहने दो
आमिर उस्मानी
नज़्म
शिकस्त-ए-ख़्वाब की रूदाद-ए-ग़म दोहराते रहते हैं
यहाँ हर शाम मेहराबों में उड़ती हैं अबाबीलें
क़ैसर-उल जाफ़री
नज़्म
तारीक दिल का गोशा न हो ज़ौ-फ़िशाँ कहीं
रूदाद-ए-ग़म सुनाते ही यूँ आई उन की याद
जयकृष्ण चौधरी हबीब
नज़्म
कोई क्यों हम-जिंस के ज़ुल्म-ओ-तशद्दुद पर कुढ़े
वर्ना रूदाद-ए-क़फ़स हम को सिरे से याद है
मंझू बेगम लखनवी
नज़्म
आँखों से लगे सावन की झड़ी और दिल की लगी कुछ और बढ़े
जब सीने से लग कर भी उन के रूदाद-ए-जुदाई कह न सकें
कनीज़ फ़ातिमा किरण
नज़्म
हुरमतुल इकराम
नज़्म
देखिए देते हैं किस किस को सदा मेरे बाद
'कौन होता है हरीफ़-ए-मय-ए-मर्द-अफ़गन-ए-इश्क़'
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
थे बहुत बेदर्द लम्हे ख़त्म-ए-दर्द-ए-इश्क़ के
थीं बहुत बे-मेहर सुब्हें मेहरबाँ रातों के बा'द