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नज़्म
शराब-ए-रूह-परवर है मोहब्बत नौ-ए-इंसाँ की
सिखाया इस ने मुझ को मस्त बे-जाम-ओ-सुबू रहना
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अहबाब मेहर-गुस्तर असहाब रूह-परवर
दीदार कब तुम्हारा होगा हमें मयस्सर
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
नज़्म
उन के हुस्न-ए-रूह-परवर से सुकूँ पाता है दिल
जाने क्या चुपके ही चुपके मुझ से कह जाता है दिल
अमीर औरंगाबादी
नज़्म
इक लताफ़त इक तरन्नुम इक असर है देखिए
रूह-परवर जाँ-फ़ज़ा लुत्फ़-ए-सहर है देखिए
चौधरी कालका प्रसाद ईजाद बिस्वानी
नज़्म
कृष्ण आए कि दीं भर भर के वहदत के ख़ुमिस्ताँ से
शराब-ए-मा'रिफ़त का रूह-परवर जाम हिन्दू को
ज़फ़र अली ख़ाँ
नज़्म
रोज़ ओ शब नैरंगियाँ तेरी हैं क्या क्या जाँ-फ़ज़ा
किस क़दर है रूह-परवर ये तिरी आब-ओ-हवा
सफ़ीर काकोरवी
नज़्म
मगर उस की रानाइयों से मुझे कोई दिल-बस्तगी ही नहीं थी
कभी राह चलते हुए ख़ाक की रूह-परवर कशिश
शकेब जलाली
नज़्म
जमाल-ए-क़ुद्स की क़ुर्बत भी कितनी रूह-परवर है
कि इस मंज़िल में अहल-ए-दिल फ़ना का ग़म नहीं करते