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नज़्म
जमील मज़हरी
नज़्म
ख़ाक में रौंदा हुआ चेहरा मगर इक दिलकशी
आँख में हल्का तबस्सुम, दिल में कोई टीस सी
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
ये वतन रौंदा है जिस को मुद्दतों अग़्यार ने
जिस पे ढाए ज़ुल्म लाखों चर्ख़-ए-ना-हंजार ने
जगन्नाथ आज़ाद
नज़्म
आवाज़ की सम्तें मुतअय्यन हो गईं
और तक़लीद के आसेब लफ़्ज़ों के पाक-दामन सय्यारों को रौंदते चले गए