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नज़्म
दिन का उजाला रात के अंधेरे का मुनकिर नहीं है
पतझड़ की बे-रौनक़ी आने वाले मौसम की शादाबी का मुज़्दा है
जावेद नदीम
नज़्म
आज इस शब के सन्नाटे में नींद ने आँखें फेरी हैं
शहर थका-हारा ख़ामोशी की बाहोँ में सोता है
बलराज कोमल
नज़्म
बज़्म-ए-आलम में वो कैफ़ियात-ए-रंग-ओ-बू नहीं
रौनक़-ए-ऐवान-ए-गेती आज शायद तू नहीं
मोहम्मद सादिक़ ज़िया
नज़्म
अक़ल्लीयत कहीं की हो तह-ए-ख़ंजर ही रहती है
हलाकत-ख़ेज़ हाथों के हज़ारों जब्र सहती है
ओवेस अहमद दौराँ
नज़्म
शाइ'र-ए-हिन्दोस्ताँ ऐ शाइ'र-ए-जादू-बयाँ
हिन्द के ख़ुम-ख़ाना-ए-इरफ़ाँ के ऐ पीर-ए-मुग़ाँ