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नज़्म
शहज़ाद अंजुम बुरहानी
नज़्म
जिस को देखो वही बा-दीदा-ए-तर है ऐ दोस्त
रोज़ आती है नई एक क़यामत ऐ दोस्त
अब्दुल क़य्यूम ज़की औरंगाबादी
नज़्म
तू खिलाता है नए गुल जो रवाँ होता है
रंग ये शाख़-ए-गुल-ए-तर में कहाँ होता है