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नज़्म
वो पहले से ज़ियादा भाई को क्यूँ प्यार करती हैं
लिफ़ाफ़ा दे के लुत्फ़-ए-ख़ास का इज़हार करती हैं
अख़्तर शीरानी
नज़्म
तिरे लुत्फ़-ओ-अता की धूम सही महफ़िल महफ़िल
इक शख़्स था इंशा नाम-ए-मोहब्बत में कामिल
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
तुख़्म-ए-गुल की आँख ज़ेर-ए-ख़ाक भी बे-ख़्वाब है
किस क़दर नश्व-ओ-नुमा के वास्ते बेताब है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तेरी पंजाबी ज़बाँ में लुत्फ़-ए-शहद-ओ-क़ंद है
इस क़दर सादा कि हर राह-ए-तकल्लुफ़ बंद है
अर्श मलसियानी
नज़्म
आज भी नुक्ता-चीं हूँ मैं ख़ल्वतियान-ए-ख़ास का
ख़ल्वतियान-ए-ख़ास का आज भी हूँ मिज़ाज-दाँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
एहतिमाम-ए-ज़िंदगी जिस में ब-तौर-ए-ख़ास हो
आसमाँ जिस का मोहब्बत हो ज़मीं इख़्लास हो
सीमाब अकबराबादी
नज़्म
वो शय दे जिस से नींद आ जाए अक़्ल-ए-फ़ित्ना-परवर को
कि दिल आज़ुर्दा-ए-तमईज़-ए-लुत्फ़-ए-जौर है साक़ी
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ग़म-ए-हयात को हँस हँस के जो उठाता है
उसी को मिलता है याँ लुत्फ़-ए-जाविदान-ए-हयात