aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "लुत्फ़-ए-मुसलसल"
वो दिलकश निगाहें वो शीरीं-बयानीवो लुत्फ़-ए-मुसलसल शब-ए-शादमानी
तिरे लुत्फ़-ओ-अता की धूम सही महफ़िल महफ़िलइक शख़्स था इंशा नाम-ए-मोहब्बत में कामिल
ज़ीस्त मर्ग-ए-मुसलसल की तश्कील है
अश्क पत्थर की तरह जम से गए हैं मेरेज़िंदगी अर्सा-गह-ए-जोहद-ए-मुसलसल ही सही
मह-ए-तमाम फ़क़त देखता नहीं है हमेंवो जब्र-ओ-क़ैद-ए-मुसलसल पे इक मशक़्क़त की
हल्क़ा-ए-मर्ग-ए-मुसलसल की तरफ़ भागीउधर चौथे क्वार्टर से वो निकली
और विज्दान-ओ-दरकख़ुद-फ़रेबी-ए-मुसलसल का तिलिस्म
कहीं ओढ़ ले अपना रूपएक ज़र्ब-ए-मुसलसल
आ जाती है गर्दन तकये ज़ंजीर-ए-मुसलसल
रक़्स-ए-मुसलसल करते हुए ग़र्क़-ए-तमन्ना
मैं समझता हूँकि इक वहम-ए-मुसलसल के सिवा
अपने ही हाथों सेक़त्ल-ए-मुसलसल में मसरूफ़ हूँ
लहू में नहाए हुए कितने सूरज मज़ारों के कतबे!कहीं ढोल की थाप पर रक़्स-ए-मर्ग-ए-मुसलसल
इक आफ़त-ए-मुसलसलआलाम-ए-ना-गहानी
वो क़रीब-ए-मुसलसल की दौलत कहाँ से मिलेक्या कोई
कर्ब-ए-मुसलसल में मुब्तला होख़ुद को कंगाल करने के बावजूद
आया है नया सालऐ सई-ए-मुसलसल तिरे ए'जाज़ के सदक़े
ख़ौफ़-ए-दरबाँ है तज़ब्ज़ुब ज़िंदाँज़िंदगी जब्र-ए-मुसलसल के सबब
देख के तेरी जेहद-ए-मुसलसलछट गए ख़ुद ही दुख के बादल
हर ताक़ सजा सा लगता हैइक फ़र्ज़-ए-मुसलसल की धुन पर
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