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नज़्म
तिरे लुत्फ़-ओ-अता की धूम सही महफ़िल महफ़िल
इक शख़्स था इंशा नाम-ए-मोहब्बत में कामिल
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
बहुत मजबूर हो कर इल्तिजा-ए-रहम की मैं ने
मिरा सर अपने सीने से लगा लेती तो अच्छा था
द्वारका दास शोला
नज़्म
तेरी पंजाबी ज़बाँ में लुत्फ़-ए-शहद-ओ-क़ंद है
इस क़दर सादा कि हर राह-ए-तकल्लुफ़ बंद है
अर्श मलसियानी
नज़्म
क़ल्ब-ए-इंसानी में रक़्स-ए-ऐश-ओ-ग़म रहता नहीं
नग़्मा रह जाता है लुत्फ़-ए-ज़ेर-ओ-बम रहता नहीं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
वो शय दे जिस से नींद आ जाए अक़्ल-ए-फ़ित्ना-परवर को
कि दिल आज़ुर्दा-ए-तमईज़-ए-लुत्फ़-ए-जौर है साक़ी
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ग़म-ए-हयात को हँस हँस के जो उठाता है
उसी को मिलता है याँ लुत्फ़-ए-जाविदान-ए-हयात
मंशाउर्रहमान ख़ाँ मंशा
नज़्म
है राह-पैमा को सिखाता है ख़िराम-ए-नाज़ का
अंदाज़ लुत्फ़-ए-लज़्ज़त-ए-पुरकार रक़्स-ए-मुंज़बित की आहनी
बलराज कोमल
नज़्म
जो कल ख़ाली था वो दस्त-ए-तलब है आज भी ख़ाली
लबों पर लुत्फ़-ए-अंदाम-ए-निहाँ की अन-सुनी गाली
बलराज कोमल
नज़्म
गुलों के रंग में थी शान-ए-ख़ंदा-ए-यूसुफ़
कली के साज़ में था लुत्फ़-ए-नग़्मा-ए-दाऊद
जोश मलीहाबादी
नज़्म
मय भी है साक़ी भी है फिर लुत्फ़-ए-मय-ख़ाना नहीं
मेरी बातों को समझ ले ऐसा दीवाना नहीं