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नज़्म
वक़्त-ए-सहर, ख़ामोश धुँदलका एक सितारा काँप रहा है
जैसे कोई बोसीदा कश्ती तूफ़ानों में डोल रही हो
रिफ़अत सरोश
नज़्म
हाए वो तेरे तबस्सुम की अदा वक़्त-ए-सहर
सुब्ह के तारे ने अपनी जान तक कर दी निसार
मुईन अहसन जज़्बी
नज़्म
अहल-ए-इस्लाम से लेना है इबादत का जलाल
और ईसाईयों से सब्र लगन और इस्तिक़्लाल
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
नज़्म
खींचती वक़्त-ए-सहर दिल को तिरी कू-कू न थी
छाँव में तारों की महव-ए-नग़्मा-ए-दिल-जू न थी