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नज़्म
बढ़ रही हैं गोद फैलाए हुए रुस्वाइयाँ
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ग़म का मारा हर कोई ख़ुशियों का ठुकराया लगे
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ
नज़ीर फ़तेहपूरी
नज़्म
उस को दौड़ाते हैं ये बच्चे इधर गाहे उधर
''ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ, ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ''
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
मस्ताना हाथ में हाथ दिए ये एक कगर पर बैठे थे
यूँ शाम हुई फिर रात हुई जब सैलानी घर लौट गए
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
यूँ फ़ज़ाओं में रवाँ है ये सदा-ए-दिल-नशीं
ज़ेहन-ए-शाइर में हो जैसे इक अछूता सा ख़याल
इब्न-ए-सफ़ी
नज़्म
मुझे तेरे तसव्वुर से ख़ुशी महसूस होती है
दिल-ए-मुर्दा में भी कुछ ज़िंदगी महसूस होती है