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नज़्म
कुछ ऐसा है ये मैं जो हूँ ये मैं अपने सिवा हूँ ''मैं''
सो अपने आप में शायद नहीं वाक़े हुआ हूँ मैं
जौन एलिया
नज़्म
अब मैं समझा कि है क्या राज़-ए-ब-दामान-ए-हिजाब
वाक़ई तुम को नदामत है जो ख़ामोश हो तुम
शकील बदायूनी
नज़्म
दुख तो ख़ूब होता है पर अब आदत सी हो गई है
सोचती हूँ कभी क्या मेरी ये आदत वाक़ई सही है
अंकिता गर्ग
नज़्म
जिन्हें पाने को सहरा तक दिल-ए-वीरान पहुँचा है
रक़म करती हूँ किस का दिल दुखा है वाक़ई मुझ से