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नज़्म
दुकानें और गली कूचे मुझे वैसे ही लगते हैं
वही शक्ल-ओ-शबाहत के यहाँ इंसान बस्ते हैं
अब्दुल क़ादिर आरिफ़
नज़्म
ये साए की तस्वीर किसी शक्ल-ओ-शबाहत के तसलसुल के निशाँ हैं लेकिन
ना-सुबूरी ये बदन तोड़ती अंगड़ाइयाँ
किश्वर नाहीद
नज़्म
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
नज़्म
भगवान भगत ने हिम्मत की इक प्रेम-ज्वाला जाग उठी
करवा कर शीर-ओ-शकर सब को दिखला दिया गाँधी बाबा ने
आफ़ताब रईस पानीपती
नज़्म
फिर भी जाने किस तरह शीर-ओ-शकर थे हम
हमारी छोटी छोटी ख़्वाहिशें हर तौर हम-आहंग थीं इतनी
इशरत आफ़रीं
नज़्म
अपनी बेगम पर हुए शाम-ओ-सहर हम यूँ निसार
पोस्टरों की शक्ल में रस्सी पे लटका है वो प्यार