aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "शब-ए-अलम"
इक पल के लिए शब-ए-अलम मेंचमकेंगे तसल्लियों के आँसू
उजाला सा उजाला है तिरी शम-ए-हिदायत काशब-ए-तीरा में भी इक रौशनी महसूस होती है
ग़म-ख़्वार हैं मेरे लिए शब-हा-ए-अलम मेंआख़िर तो ग़म-ए-दोस्त के मारे हैं ये आँसू
इन की क़िस्मत में शब-ए-माह को रोना कैसाइन के सीने में न हसरत न तमन्ना कोई
शहर-ए-दिल की गलियों मेंताक शब की बेलों पर
याँ तो आया जो मुसाफ़िर यूँ ही शब-भर ठहराये सराए है यहाँ किस का ठिकाना ढूँडो
याँ तो आया जो मुसाफ़िर यूँही शब भर ठहराये सराए है यहाँ किस का ठिकाना ढूँडो
चराग़ राह में उस के अमल से जलने लगेलो आज सुब्ह-ए-शब-ए-इंतिज़ार आ ही गई
शब-ए-अलम के हैं क़िस्से जुनूँ की तफ़्सीरेंवरक़ वरक़ है परेशाँ ग़ुबार-ए-ख़ातिर का
शाम-ए-अलम-नुमा है शब है सुकूत-अफ़्ज़ाओढ़े हुए है गोया चादर स्याह दुनिया
ख़ुशबू भी उड़ीऔर गेसु-ए-शब में जा उलझी
तिरी नज़र की शुआ'ओं में खो भी सकती थीअजब न था कि मैं बेगाना-ए-अलम हो कर
जिस मंज़िल पर इंकार-ए-दरून-ए-ज़ात-ए-अलमएहसास-ए-बद दूर हो जाएगा
अब न दोहरा फ़साना-हा-ए-अलमअपनी क़िस्मत पे सोगवार न हो
वो वादी-ए-उल्फ़त थीया कोह-ए-अलम जो था
ज़ुल्मत-ए-शाम-ए-अलम कम करनेअपने ही घर में आग लगा दी
अंजाम-ए-अमल है सरगिरानीइक अश्क-ए-अलम है ज़िंदगानी
मंज़ूर ये तल्ख़ी ये सितम हम को गवारादम है तो मुदावा-ए-अलम करते रहेंगे
ख़ार-ज़ार-ए-अलम बन गएरात की शह-रगों का उछलता लहू
बदलेगा रंग शाम-ए-अलममेरे बाद आ
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