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नज़्म
आमिर रियाज़
नज़्म
मोहम्मद हनीफ़ रामे
नज़्म
ख़ैर-मक़्दम को मिरे कोई ब-हंगाम-ए-सहर
अपनी आँखों में लिए शब का ख़ुमार आ ही गया
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
क्यूँ ज़ियाँ-कार बनूँ सूद-फ़रामोश रहूँ
फ़िक्र-ए-फ़र्दा न करूँ महव-ए-ग़म-ए-दोश रहूँ