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नज़्म
हवस-कारी है जुर्म-ए-ख़ुद-कुशी मेरी शरीअ'त में
ये हद्द-ए-आख़िरी है मैं यहाँ तक जा नहीं सकता
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
कहते थे कि पिन्हाँ है तसव्वुफ़ में शरीअत
जिस तरह कि अल्फ़ाज़ में मुज़्मर हों मआनी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
''आशिक़ी क़ैद-ए-शरीअत में'' अभी आई न थी
किस क़दर थे मुतमइन गो जेब में पाई न थी
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
ये बुत-ख़ाने नहीं क़ब्रें हैं ‘इरफ़ान-ओ-हक़ीक़त की
यहाँ ख़ूँ-रंग है पोशाक सलमा-ए-शरी’अत की