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नज़्म
यूँ फ़ज़ाओं में रवाँ है ये सदा-ए-दिल-नशीं
ज़ेहन-ए-शाइर में हो जैसे इक अछूता सा ख़याल
इब्न-ए-सफ़ी
नज़्म
मुझे तेरे तसव्वुर से ख़ुशी महसूस होती है
दिल-ए-मुर्दा में भी कुछ ज़िंदगी महसूस होती है
कँवल एम ए
नज़्म
आग ही तो शान-ए-लब है आग उगलते जाओ तुम
ख़्वाह शहर-ए-दिल जले या जिस्म का जंगल जले