aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "शहर-ए-शब"
शहर-ए-शब-ए-महताब कीबेचैन जादू-गर्नियाँ
मक़ाम-ए-आख़िर-ए-शब से गुज़र रहे हैं आज
शहर-ए-दिल की गलियों में
सोच तो क्या फल मुझ को मिला मैं मन से गया फिर तन से गयाशहर-ए-वतन में अजनबी ठहरा आख़िर शहर-ए-वतन से गया
और शहर-ए-वफ़ा से दश्त-ए-जुनूँ कुछ दूर नहींहम ख़ुश न सही, पर तेरे सर का वबाल गया
उजाला सा उजाला है तिरी शम-ए-हिदायत काशब-ए-तीरा में भी इक रौशनी महसूस होती है
उजड़ी मंडी, लाग़र कुत्ते, टूटे खम्बे ख़ाली खेतक्या इस नहर के पुल के आगे ऐसा शहर-ए-ख़मोशाँ था
ख़ाली सपनों से न औक़ात बनेगी अपनीये शब-ए-माह भी कट जाएगी बे-कल बे-कल
मैं कड़ी हूँ गए ज़मानों कीशहर-ए-माज़ी के ख़ाक दानों की
याँ तो आया जो मुसाफ़िर यूँ ही शब-भर ठहराये सराए है यहाँ किस का ठिकाना ढूँडो
झाँकता सूरत-ए-ख़ैल-ए-आवारगाँग़ुर्फ़ा ग़ुर्फ़ा बहर काख़-ओ-कू शहर में
याँ तो आया जो मुसाफ़िर यूँही शब भर ठहराये सराए है यहाँ किस का ठिकाना ढूँडो
चराग़ राह में उस के अमल से जलने लगेलो आज सुब्ह-ए-शब-ए-इंतिज़ार आ ही गई
ख़ुशबू भी उड़ीऔर गेसु-ए-शब में जा उलझी
कल शब मैं शहर-ए-इश्क़ से लौटा जो अपने घरदरवाज़े ता'ने कसने लगा मेरे हाल पर
तो शोर-ए-शब-ख़ूँजो हर तरफ़ है
नीम-शब और शहर-ए-ख़्वाब-आलूदा, हम-साएकि जैसे दुज़्द-ए-शब-गर्दां कोई!
गेंद-ए-शब में मह-ओ-नज्म सजाए जिस नेशहर-ए-दिल में न सही चाँद सितारे लेकिन
शहर-ए-दिलशहर-ए-‘अजब
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