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नज़्म
दुनिया की इल्ला-बिल्ला ठसी पड़ी है मुझ में
हाँ कुछ काम की चीज़ें भी हैं इस कबाड़-ख़ाने में
मोहम्मद हनीफ़ रामे
नज़्म
मैं तुम में शामिल-ए-सफ़र हूँ मगर पनाह माँगता अपनी अजल को ढूँढता हूँ
और जो अपनी अजल को ढूँढता है
अहमद हमेश
नज़्म
अजनबी तुझ से तअ'ल्लुक़ का सिला ख़ूब है ये
तेरी ख़्वाहिश है कि हर रोज़ नई नज़्म लिखूँ तेरे नाम