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नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
इसी के ख़र्रमी-ए-आग़ोश में उस का नशेमन था
इसी शादाब वादी में वो बे-बाकाना रहती थी
अख़्तर शीरानी
नज़्म
जब तक न बहेगा ये धारा शादाब न होगा बाग़ तिरा
ऐ ख़ाक-ए-वतन दामन से तिरे धुलने का नहीं ये दाग़ तिरा
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
फिर उसी वादी-ए-शादाब में लौट आया हूँ
जिस में पिन्हाँ मिरे ख़्वाबों की तरब-गाहें हैं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
हर वक़्त सुहाना क्या कहना हर रात सुहानी क्या कहना
बरसात के भीगे लम्हों में शादाब जवानी क्या कहना
नुशूर वाहिदी
नज़्म
मजीद अमजद
नज़्म
फ़िक्र ओ एहसास के शादाब गुलिस्तानों से
तुम ने कलियाँ ही चुनीं मैं ने तो काँटे भी चुने