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नज़्म
मोर किसे जंगल में जा कर अपना नाच दिखाता है
गीदड़ की शामत आए तो शहर की जानिब जाता है
जमील उस्मान
नज़्म
बकरे के सर पे आएगी शामत ही क्यूँ न हो
''इस में हमारे सर पे क़यामत ही क्यूँ न हो''