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नज़्म
ज़बाँ-बुरीदा हूँ ज़ख़्म-ए-गुलू से हर्फ़ करो
शिकस्ता-पा हूँ मलाल-ए-सफ़र की बात सुनो
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
शिकस्ता ख़्वाहिशों के अन-गिनत आसेब बस्ते हैं
जो आधी शब तो रोते हैं फिर आधी रात हँसते हैं
रहमान फ़ारिस
नज़्म
कितने सीनों में शिकस्ता हैं अभी दिल के रबाब
लब-ए-ख़ामोश पे हैं नग़्मा-ए-मातम कितने
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
सर-निगूँ और शिकस्ता मकानों के मलबे से पुर रास्तों पर
अपने नग़्मों की झोली पसारे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
अभी फिर आग उट्ठेगी शिकस्ता साज़ से आख़िर
मुझे जाना है इक दिन तेरी बज़्म-ए-नाज़ से आख़िर