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नज़्म
वो दिन जो गुज़रे हैं भोली बिसरी हिकायतें हैं
कि दोस्तों से न कोई शिकवा न दुश्मनों से शिकायतें हैं
बिमल कृष्ण अश्क
नज़्म
ये शिकायत नहीं हैं उन के ख़ज़ाने मामूर
नहीं महफ़िल में जिन्हें बात भी करने का शुऊ'र
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तुम इस absurdity में इक रदीफ़ इक क़ाफ़िया ठहरो
रदीफ़ ओ क़ाफ़िया क्या हैं शिकस्त-ए-ना-रवा क्या है
जौन एलिया
नज़्म
दिल तो चाहा पर शिकस्त-ए-दिल ने मोहलत ही न दी
कुछ गिले शिकवे भी कर लेते मुनाजातों के बा'द