aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "शिकायत-ए-सितम"
फ़ुर्सत तिरी अज़ीज़ है मंज़िल की राह लेकब तक शिकायत-ए-सितम-ए-आसमाँ रहे
किस से इस दर्द-ए-जुदाई की शिकायत कहिएयाँ तो सीने में नियस्तां का नियस्तां होगा
जब घुली तेरी राहों में शाम-ए-सितमहम चले आए लाए जहाँ तक क़दम
मैं कट गिरूँ कि सलामत रहूँ यक़ीं है मुझेकि ये हिसार-ए-सितम कोई तो गिराएगा
अपने बस का नहीं बार-ए-संग-ए-सितमबार-ए-संग-ए-सितम, बार-ए-कोहसार-ए-ग़म
ये निफ़ाक़-ए-तरहदार-ए-अहल-ए-सितम तो रिवायत में सदियों से मन्क़ूल हैऔर मा'मूल है
ज़मीं एक मुद्दत सेइस कार-ओ-बार-ए-सितम में घिरी है
फिर रहा है मिरी नज़रों में सरापा तेराआह-ओ-क़ैद-ए-सितम और बुढ़ापा तेरा
राज़-दाँ दास्तान-ए-सितम के
हर दस्त-ए-सितम काँपाबंदूक़ भी थर्राई
हुआ है नस्र को एहसास फिर यतीमी काहवा-ए-शहर-ए-सितम किस अदा से गुज़री है
तख़्ता-ए-मश्क़-ए-सितम क़ैदी-ए-ज़ंजीर हूँ मैंसैकड़ों दुश्मन-ए-सफ़्फ़ाक लगे हैं पीछे
वही सरगोशियाँ सैल-ए-सितम कीवही मंज़र
मुतशक्किक है और शिकायत-ए-हिज्रनुज़हत और शुक्र-ए-लुत्फ़-ए-पिन्हानी
ज़ालिम के लब पे ज़िक्र भी इन का गुनाह हैफलती नहीं है शाख़-ए-सितम इस ज़मीन पर
फ़रेब-ए-अहद-ए-सितम दो-घड़ी का मेहमाँ हैफिर अपनी बज़्म-ए-तमन्ना सजाएँगे हम भी
बा हमा ग़म ब हमा लज़्ज़त-ए-आज़ार-ए-सितमदेखना ठहरा मुझे आरज़ू-ए-वस्ल का ख़ूँ
ये सुब्ह-ए-अलम ये शाम-ए-सितम
हाँ तल्ख़ी-ए-अय्याम अभी और बढ़ेगीहाँ अहल-ए-सितम मश्क़-ए-सितम करते रहेंगे
किस क़दर हम पे जफ़ा-गर ने जफ़ाएँ तोड़ींतख़्ता-ए-मश्क़-ए-सितम मौरिद-ए-बे-दाद रहे
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