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नज़्म
किताब-ए-मिल्लत-ए-बैज़ा की फिर शीराज़ा-बंदी है
ये शाख़-ए-हाशमी करने को है फिर बर्ग-ओ-बर पैदा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
है लहद इस क़ुव्वत-ए-आशुफ़्ता की शीराज़ा-बंद
डालती है गर्दन-ए-गर्दूं में जो अपनी कमंद
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ये देश कि हिन्दू और मुस्लिम तहज़ीबों का शीराज़ा है
सदियों की पुरानी बात है ये पर आज भी कितनी ताज़ा है
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
आईन-ए-चमन-बंदी भी नहीं दस्तूर-ए-नवा-संजी भी नहीं
अब इस से ज़ियादा गुलशन का शीराज़ा परेशाँ क्या होगा
माहिर-उल क़ादरी
नज़्म
परेशाँ उस का शीराज़ा हर इक कल उस की बे-कल है
ये वो गाड़ी है जो फ़नकार की तख़लीक़-ए-अव्वल है
असद जाफ़री
नज़्म
मुन्कशिफ़ होने को है राज़-ए-सबात-ए-जावेदाँ
आज अगर शीराज़ा-ए-हस्ती परेशाँ है तो क्या
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
ऐ इश्क़ न छेड़ आ आ के हमें हम भूले हुओं को याद न कर
पहले ही बहुत नाशाद हैं हम तू और हमें नाशाद न कर