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नज़्म
क्या रेनी ख़ंदक़ रन्द बड़े क्या ब्रिज कंगूरा अनमोला
गढ़ कोट रहकला तोप क़िला क्या शीशा दारू और गोला
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
तुम न आए थे तो हर इक चीज़ वही थी कि जो है
आसमाँ हद्द-ए-नज़र राहगुज़र राहगुज़र शीशा-ए-मय शीशा-ए-मय
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
हो अगर हाथों में तेरे ख़ामा-ए-मोजिज़ रक़म
शीशा-ए-दिल हो अगर तेरा मिसाल-ए-जाम-ए-जम