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नज़्म
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
तुम न आए थे तो हर इक चीज़ वही थी कि जो है
आसमाँ हद्द-ए-नज़र राहगुज़र राहगुज़र शीशा-ए-मय शीशा-ए-मय
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
या गुज़शता वक़्त के भँवर के दस्त-ए-आतिशीं में एक सैद-ए-ज़र्द था
तो मैं ने क्या किया
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
नज़्म
देखिए देते हैं किस किस को सदा मेरे बाद
'कौन होता है हरीफ़-ए-मय-ए-मर्द-अफ़गन-ए-इश्क़'
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
लब पर है तल्ख़ी-ए-मय-ए-अय्याम वर्ना 'फ़ैज़'
हम तल्ख़ी-ए-कलाम पे माइल ज़रा न थे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
कौन होता है हरीफ़-ए-मय-ए-मर्द-अफ़्गन-ए-इल्म
किस के सर जाएगा अब बार-ए-गिरान-ए-उर्दू
मसऊद हुसैन ख़ां
नज़्म
या कि दोशीज़ा है इक मस्त-ए-मय-ए-हुस्न-ए-बहार
सुर्ख़ आँचल जिस का उड़ता है फ़ज़ा में बार बार
साक़िब कानपुरी
नज़्म
बाहें फैलाए हुए रास्ता रोके है खड़ा
कौन होता है हरीफ़-ए-मय-ए-मर्द अफ़गन-ए-इश्क़