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नज़्म
ये मोहब्बत की फ़ज़ा क़ाएम हुई है आप से
आप का लाज़िम तह-ए-दिल से हमें शुक्राना है
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
उस के रंगों का अहाता कर सके
मगर रंगीन-सेट भी तो शाइराना मुबालग़े से काम लेते हैं
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
नज़्म
मुझे होश ही नहीं कुछ कि मैं शाद हूँ कि 'नाशाद'
है सुरूर-ए-मय से बढ़ कर मिरा ज़ौक़-ए-शाइ'राना
राबिया सुलताना नाशाद
नज़्म
अपने पैमाँ को मानिंद-ए-हबाब टूटता देख कर
आओ मोहब्बत के ख़ुदा का शुक्रिया अदा करें