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नज़्म
देख हैजान से लर्ज़ां हैं ये आरिज़ की रगें
आज उस जिन्स-ए-गिराँ-बार को अर्ज़ां कर लें
अख़्तर पयामी
नज़्म
वक़्त के दस्त-ए-गिराँ-बार से मायूस न हो
किस को मालूम है क्या होना है और क्या हो जाए
मुस्तफ़ा ज़ैदी
नज़्म
गो सब्र-आज़मा है मसाफ़त की मुश्किलें
हाइल है राह-ए-शौक़ में संग-ए-गिराँ कहीं
जयकृष्ण चौधरी हबीब
नज़्म
ताक़त-ए-सब्र अगर हो तो ये ग़म-ख़्वार भी हैं
हाथ ख़ाली हूँ तो ये जिन्स-ए-गिराँ-बार भी हैं
ज़ेहरा निगाह
नज़्म
हटा देंगे हर इक संग-ए-गिराँ को अपने रस्ते से
नुमायाँ अपनी शान-ए-इस्तक़ामत कर के छोड़ेंगे
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
दिल कोई हर्फ़-ए-ग़लत बन के मिटा जाता है
और हर साँस गिराँ-बार-ओ-पशेमान भी है