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नज़्म
फ़र्ज़ करो ये रोग हो झूटा झूटी पीत हमारी हो
फ़र्ज़ करो इस पीत के रोग में साँस भी हम पर भारी हो
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
उठ रही है कहीं क़ुर्बत से तिरी साँस की आँच
अपनी ख़ुशबू में सुलगती हुई मद्धम मद्धम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मिरे सीने में कब सोज़िंदा-तर दाग़ों के हैं थाले
मगर दोज़ख़ पिघल जाए जो मेरे साँस अपना ले
जौन एलिया
नज़्म
साक़ी फ़ारुक़ी
नज़्म
मैं साँस लूँ भी तो कैसे कि मेरी साँसों में
तुम्हारी डूबती साँसों के तीर चुभते हैं
ज़ुबैर अली ताबिश
नज़्म
कि अब तक मैं अँधेरों की धमक में साँस की ज़र्बों पे
चाहत की बिना रख कर सफ़र करता रहा हूँगा
मोहसिन नक़वी
नज़्म
वो मेरी आँखों पर झुक कर कहती है ''मैं हूँ''
उस का साँस मिरे होंटों को छू कर कहता है ''मैं हूँ''
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
क्यूँ भी कहना जुर्म है कैसे भी कहना जुर्म है
साँस लेने की तो आज़ादी मयस्सर है मगर