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नज़्म
मिरा रोना नहीं रोना है ये सारे गुलिस्ताँ का
वो गुल हूँ मैं ख़िज़ाँ हर गुल की है गोया ख़िज़ाँ मेरी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मजीद अमजद
नज़्म
पीठ पर नाक़ाबिल-ए-बर्दाश्त इक बार-ए-गराँ
ज़ोफ़ से लर्ज़ी हुई सारे बदन की झुर्रियाँ
सीमाब अकबराबादी
नज़्म
जब किसी तमतमाते हुए जिस्म का सरसराता हुआ पैरहन
रस-भर संतरे के चमकदार छिलके की मानिंद उतरने लगेगा
बशर नवाज़
नज़्म
कुछ दर्द में डूबी ग़म-ए-हिज्राँ से मोअ'त्तर
मानूस से अल्फ़ाज़ में पहचानी सी सतरें
अमित गोस्वामी
नज़्म
तार-ए-शुआ-ए-मेह्र हैं सतरें बयाज़ की
सुर्ख़ी शफ़क़ की साफ़ है 'उन्वान-ए-सुब्ह-ए-ईद