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नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
संसार के सारे मेहनत-कश खेतों से मिलों से निकलेंगे
बे-घर बे-दर बे-बस इंसाँ तारीक बिलों से निकलेंगे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
कँवल का फूल थी संसार से बेगाना रहती थी
नज़र से दूर मिस्ल-ए-निकहत-ए-मस्ताना रहती थी
अख़्तर शीरानी
नज़्म
ये धरती ये जीवन-सागर ये संसार हमारा है
अमृत बादल बन के उठे हैं पर्बत से टकराएँगे