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नज़्म
ऐ अंदलीब-ए-गुलशन मैं हूँ तिरा फ़िदाई
इस सौत-ए-जाँ-फ़ज़ा की अल्लह रे दिल-रुबाई
मास्टर बासित बिस्वानी
नज़्म
उस बज़्म-ए-जाँ-फ़ज़ा का नज़्ज़ारा फिर दिखा दे
गुलज़ार-ए-आरज़ू में फिर ताज़ा गुल खिला दे
ख़ुशी मोहम्मद नाज़िर
नज़्म
ख़ुशबू-ए-जाँ-फ़ज़ा से हर जानवर मगन है
उन के रग-ए-अमल में वो जोश मौजज़न है
मोहम्मद शरफ़ुद्दीन साहिल
नज़्म
आज भी मैं सुन रहा हूँ नग़्मा-हा-ए-जाँ-फ़ज़ा
दौड़ती है साज़-ए-हस्ती में तिरी रंगीं नवा
सहबा लखनवी
नज़्म
और होती हैं तजल्ली-बख़्श ताज-ए-ज़र-फ़िशाँ
फिर भी वो शायर की नज़रों में हैं ख़ाली सीपियाँ
जोश मलीहाबादी
नज़्म
मैं तख़्लीक़ का नग़्मा-ए-जाँ-फ़ज़ा हूँ, मुझे कोई गाए
मैं इंसान की मंज़िल-ए-आरज़ू हूँ मुझे कोई पाए
रिफ़अत सरोश
नज़्म
छुप रहा है पर्दा-ए-मग़रिब में महर-ए-ज़र-फ़िशाँ
दीद के क़ाबिल हैं बादल में शफ़क़ की सुर्ख़ियाँ