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नज़्म
इक मादर-ए-मुफ़लिस ईद के दिन बच्चों को लिए बहलाती है
सर उन का कभी सहलाती है नर्मी से कभी समझाती है
नुशूर वाहिदी
नज़्म
रह न सके अब इस दुनिया में युग सरमाया-दारी का
तुम को झंडा लहराना है मेहनत की सरदारी का