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नज़्म
उस रोज़ हमें मालूम हुआ उस शख़्स का मुश्किल समझाना
इस बस्ती के इक कूचे में इक 'इंशा' नाम का दीवाना
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
अक़्ल की बातें कहने वाले दोस्तों ने उसे समझाया
उस को तो लेकिन चुप सी लगी थी ना बोला ना बाज़ आया
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
कभी खेला जो कोई खेल गंदा मुझ को समझाया
कभी चुग़ली किसी की मैं ने खाई तो बुरा माना
अबुल मुजाहिद ज़ाहिद
नज़्म
समझाया मैं ने जा कर हामिद को उस के घर पर
यूँ मत सुनाओ सब को क़िस्सा सुना सुनाया
अहमद हातिब सिद्दीक़ी
नज़्म
माँ ने बच्चे को ये समझाया बहुत देर तलक
ऐ नए साल तिरे जश्न-ए-तरब का मतलब
सय्यद अब्बास रज़ा तनवीर
नज़्म
गुल से अपनी निस्बत-ए-देरीना की खा कर क़सम
अहल-ए-दिल को इश्क़ के अंदाज़ समझाने लगीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
ज़िक्र-ए-अहल-ए-हर्फ़ है जिस में लिखी वो भी किताब
उस में समझाया 'अनीस'-ओ-'मीर'-ओ-'ग़ालिब' का मक़ाम