आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "समाजत"
नज़्म के संबंधित परिणाम "समाजत"
नज़्म
ख़ुशामद इल्तिजा मिन्नत समाजत आरज़ू-मंदी
ज़वाहिर में ज़वाहिर की करें हम ख़ाक पाबंदी
अली मंज़ूर हैदराबादी
नज़्म
मनहूस समाजी ढाँचों में जब ज़ुल्म न पाले जाएँगे
जब हाथ न काटे जाएँगे जब सर न उछाले जाएँगे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
मिरी बिगड़ी हुई तक़दीर को रोती है गोयाई
मैं हर्फ़-ए-ज़ेर-ए-लब शर्मिंदा-ए-गोश-ए-समाअत हूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तारिक़ क़मर
नज़्म
धनक गीत बन के समाअ'त को छूने लगी हो
शफ़क़ नर्म कोमल सुरों में कोई प्यार की बात कहने चली हो
परवीन शाकिर
नज़्म
हद-ए-समाअत से आगे जाने वाली आवाज़ों के रेशम से
अपनी रू-ए-सियाह पे तारे काढ़ते रहते हैं
परवीन शाकिर
नज़्म
एक बोसीदा हवेली यानी फ़र्सूदा समाज
ले रही है नज़अ के आलम में मुर्दों से ख़िराज
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
समाजी मशग़लों में या तो हैं शादी की तक़रीबें
नहीं तो महफ़िल-ए-मीलाद वो मज्लिस नियाज़ और नज़रें
सय्यदा फ़रहत
नज़्म
निगाहें धुंद के पर्दों में उन को ढूँडती हैं
और समाअत उन की मीठी नर्म आहट के लिए