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नज़्म
मैं ने इस्मत के सनम ख़ानों को मिस्मार किया
अपनी बहनों को सुपुर्द-ए-सर-ए-बाज़ार किया
वामिक़ जौनपुरी
नज़्म
देखना आख़िर सर-ए-बाज़ार रुस्वा कर दिया
रोज़ वाइ'ज़ तुम दुआ माँगा करो औलाद की
इस्मतुल्लाह इस्मत बेग
नज़्म
सर-ए-बाज़ार बिक जाएगी तेरे प्यार की अज़्मत
चलेंगे इश्क़ के हस्सास दिल पर ज़ुल्म के आरे
प्रेम वारबर्टनी
नज़्म
''सर-ए-बाज़ार मी-रक़सम'' का इल्हामी वज़ीफ़ा गुनगुनाती है
बका-ए-यार की ख़ातिर फ़ना तस्लीम करती है...
मासूम शीराज़ी
नज़्म
बिकते सर-ए-बाज़ार हैं मानिंद-ए-ज़ग़ाल आज
जो ताज़ा-नफ़स ख़्वाब-ए-तग़य्युर थे शहाबी
अज़ीज़ हामिद मदनी
नज़्म
मशीं पर हाल-ए-दिल कहने का क्यों इसरार करते हो
मुक़द्दस राज़ क्यों 'उर्यां सर-ए-बाज़ार करते हो