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नज़्म
तुर्बत है कहाँ उस की मस्कन था कहाँ उस का
अब अपने सुख़न-परवर ज़ेहनों में सवाल आया
साहिर लुधियानवी
नज़्म
वो कहते हैं: इस सवाल का जवाब दरख़्तों के पास है
कोई भी मौसम हो वो अपनी जगह नहीं छोड़ते
सरवत हुसैन
नज़्म
ख़ुद ब-ख़ुद फिर गए नज़रों में ब-अंदाज़-ए-सवाल
वो जो रस्तों पे पड़े रहते हैं लाशों की तरह