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नज़्म
उन गलियों की बूढ़ी छाल पे इफ़्रीतों के हमले
तपती ज़मीं के सातवीं तलवे तक लहराती अंधी चीख़ें
तबस्सुम काश्मीरी
नज़्म
वो मेरी ज़िंदगी का सब से पहला रतजगा था
जब क़दम रक्खा था मैं ने ज़िंदगी की सातवीं शब में
इशरत आफ़रीं
नज़्म
पाँचवाँ है और छटा है और पतंगें और डोर
सातवाँ है, आठवाँ है और नवाँ करते हैं ज़ोर