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नज़्म
मुफ़्लिसी और ये मज़ाहिर हैं नज़र के सामने
सैकड़ों सुल्तान-ए-जाबिर हैं नज़र के सामने
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
नज़र से दूर मंज़र का सर-ओ-सामान-ए-सर्वत हो
हमारी उम्र का क़िस्सा हिसाब अंदोज़-ए-आनी है
जौन एलिया
नज़्म
ये किस तरह याद आ रही हो ये ख़्वाब कैसा दिखा रही हो
कि जैसे सच-मुच निगाह के सामने खड़ी मुस्कुरा रही हो
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
बल्ली-मारां के मोहल्ले की वो पेचीदा दलीलों की सी गलियाँ
सामने टाल की नुक्कड़ पे बटेरों के क़सीदे
गुलज़ार
नज़्म
मुझे राज़-ए-दो-आलम दिल का आईना दिखाता है
वही कहता हूँ जो कुछ सामने आँखों के आता है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तवंगर हिर्ज़ा-कारों को किया दरयूज़ा-गर मुझ को
मगर जब जब किसी के सामने दामन पसारा है