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नज़्म
कहाँ तक ऐ सितमगर चर्ख़ तदबीरें ग़ुलामी की
कि अब बार-ए-गराँ है दिल को ज़ंजीरें ग़ुलामी की
ज़ाहिदा खातून ज़ाहिदा
नज़्म
फ़राईन-ए-कुहन ढल जाएँ चाहे पैकर-ए-नौ में
समुंदर को सितमगर-हाथ गर तेज़ाब कर डालें
गुफ़्तार ख़याली
नज़्म
सितमगर मैं नहीं कहता सितमगर तुम नहीं लेकिन
दिल-ए-मज़लूम की आह-ओ-फ़ुग़ाँ कुछ और कहती है
रज़ी बदायुनी
नज़्म
ज़ुल्म है जौर-ओ-जफ़ा है हर तरफ़ बेदाद है
गर्दिश-ए-दस्त-ए-सितमगर से जहाँ बर्बाद है
टीका राम सुख़न
नज़्म
गिराईं इस पे लाखों बिजलियाँ चर्ख़-ए-सितमगर ने
मगर अब भी तजल्ली-रेज़ है जन्नत-निशाँ अपना