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नज़्म
चौक चौक पर गली गली में सुर्ख़ फरेरे लहराते हैं
मज़लूमों के बाग़ी लश्कर सैल-सिफ़त उमडे आते हैं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
जिस की हर इक सिफ़त है सौ ख़ूबियों पे भारी
वो मादरी ज़बाँ है उर्दू ज़बाँ हमारी
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
नज़्म
ताबिश कमाल
नज़्म
जंगलों के बीच में आब-ए-रवाँ कौसर-सिफ़त
ऐ ख़ुदा क्या इस ज़मीं पर दूसरी जन्नत है ये