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नज़्म
हवाएँ साज़-बाज़ कर रही थीं जिन दिनों सियाह रात से
उन्ही सियाह साअतों में सानेहा हुआ
अली अकबर नातिक़
नज़्म
एक सितारा ख़लाओं से ज़मीन पर आ गिरता है
सियाह रात यकायक नूर से मा'मूर शबिस्ताँ का हवाला बन जाती है